Saturday 4 February 2017

उत्तराखंड चुनाव 2017

       उत्तराखंड चुनाव 2017 : भाजपा और कांग्रेस के बीच दो घोड़े दौड़ में, बसपा एक आश्चर्य ला सकता हैं |

समाजवादी पार्टी की साइकिल तेजी से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) हाथी से चलाने के लिए, और यहां तक ​​कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चुनावी सफलता के लिए दौड़ में इसे आगे निकल सकता है। हालांकि, उत्तराखंड की पहाड़ियों अभी भी उन्हें बढ़ना करने के लिए मुश्किल बने हुए हैं।

उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में बसपा लगातार बना दिया गया है अपनी उपस्थिति महसूस किया, जबकि सपा का जनाधार खिसक गया है। इसके अलावा, बसपा भी किंगमेकर की भूमिका 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद, की मदद से कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने निभाई।

2017 के विधानसभा चुनाव के लिए, सपा अल्पसंख्यक समुदायों से 25 उम्मीदवारों, उनमें से ज्यादातर को मैदान में उतारा गया है। सपा के लिए समस्या यह है कि अपने वोट उत्तराखंड विधानसभा क्षेत्रों में तेजी से गिर कर दिया है जब से राज्य अस्तित्व में आया है। 2002, जो है, जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया इससे पहले, पहाड़ी क्षेत्र के लिए सपा की सीटों का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है।

लेकिन तथ्य यह है कि यह आगामी विधानसभा चुनाव में केवल 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है पता चलता है कि उत्तराखंड पर अपना ध्यान केंद्रित कम हो रही है। यह वही सपा है कि 2004 में हरिद्वार संसदीय सीट जीती थी, लेकिन राज्य के अस्तित्व के 17 साल में एक भी विधानसभा क्षेत्र जीत में कामयाब नहीं किया है।

बसपा के बारे में, इस बीच, यह अक्सर कहा जाता है, "हाथी पहाड़ नहीं चाड शाक्त (एक हाथी एक पहाड़ पर चढ़ने नहीं कर सकते हैं)।" यह बसपा के उत्तराखंड की पहाड़ियों में अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थता के लिए एक स्पष्ट संदर्भ है।

मैदानी इलाकों में, हालांकि, चीजों को मायावती की पार्टी के लिए बेहतर हैं। यह 2002 के चुनाव में सात सीटें, 2007 में आठ सीटें, और 2012 में तीन सीटें मिली हैं लेकिन जब विधानसभा क्षेत्रों की संख्या में यह कम जीता है, उसके वोट शेयर  अभी भी वृद्धि हुई है। एक ही दलित-मुस्लिम संयोजन उत्तर प्रदेश में इतने प्रभावी ढंग से इस्तेमाल का प्रयोग, बसपा सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। वहाँ 24 से अधिक सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों को उनकी उपस्थिति बना रहे हैं लगा रहे हैं। बसपा मुस्लिम और दलित वोट के लिए कांग्रेस के साथ होड़ करना होगा। तो, जबकि बसपा वास्तव में कई सीटें नहीं जीत सकते, उनके उम्मीदवारों अल्पसंख्यक वोट बंटवारे से कांग्रेस की संभावनाओं को खराब कर सकता है।

कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए दिक्कत यह है कि बसपा हरिद्वार (ग्रामीण) सीट से उनके खिलाफ मुकर्रम अंसारी को मैदान में उतारा गया है। यह देखते हुए बसपा विस्तार किया है और हरिद्वार में अपने संगठनात्मक समर्थन-आधार को मजबूत किया है, यह रावत के लिए चिंता की बात हो सकती है। यह एक जिले में जो भी काफी मुस्लिम और दलित उपस्थिति है, और एक जिला है कि अपने माता पिता के राज्य उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड में होती है। बसपा के संगठनात्मक काम अतीत में अच्छे परिणाम प्राप्त हुए है, और पार्टी दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है रावत में अच्छी तरह से किया गया है: हरिद्वार (ग्रामीण) और उधमसिंह नगर।

बसपा प्रत्याशी अंजू मित्तल भी भाजपा के मदन कौशिक और कांग्रेस के ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी सहित हरिद्वार से राजनीतिक दिग्गजों, के खिलाफ है। पार्टी की सीटों पर जहां दलित और मुसलमान मतदाताओं बात करने के लिए विशेष ध्यान दिया है। इस तरह की सीटों झबरेड़ा, भगवानपुर, ज्वालापुर, पिरान कलियार, मंगलौर, हरिद्वार (ग्रामीण), खानपुर, लक्सर, और रानीपुर हैं।

पार्टी ने राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने की कोशिश की है। वर्ष 2012 में बसपा चंपावत और भीमताल में उपविजेता रहा था और बागेश्वर में तीसरे स्थान पर था। लेकिन यह पर्याप्त अपनी उपस्थिति सुझाव है कि मैदानी इलाकों में महसूस किया जा रहा था किया था। विशेष रूप से जसपुर और सितारगंज विधानसभा क्षेत्रों, जिसमें यह 2012 में दूसरा आया में यह भी सितारगंज जीता था और 2002 और 2007 में पंतनगर-गदरपुर सीटें।

Thursday 2 February 2017

Vasant Panchami Wishes


वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता,जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मना.या जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

पर्व का महत्व


वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।


Wednesday 28 December 2016

हमारे पास एक-एक पैसे का हिसाब है, बीजेपी के खातों में जमा पैसे की जानकारी दें मोदी - मायावती

बहुजन समाज पार्टी और अपने भाई आनंद कुमार के अकाउंट की प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच के बाद मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। मायावती ने कहा, 'बीएसपी ने काला धन नहीं जमा किया है और अगर बीएसपी के अकाउंट की जांच हो रही है तो बीजेपी यह भी बताए कि नोटबंदी से पहले और बाद में उसके अकाउंट में कितना पैसा जमा किया गया है।'

मायावती ने नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए कहा, 'अगर बीजेपी नोटबंदी की ही तरह एक-दो और फैसले ले लेती है तो उत्तर प्रदेश में बीएसपी को जीतने से कोई नहीं रोक सकता। बीजेपी खुद ही हार जाएगी।' मायावती ने कहा कि बीएसपी ने अपने नियमों के मुताबिक ही चलकर एक रूटिन प्रक्रिया के तहत ही पैसेबैंक में जमा कराए हैं। पार्टी के खाते में जमा कराए गए पैसों का खुलासा करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग पार्टी के मेंबर बनते हैं वे छोटे नोट नहीं बल्कि बड़े नोट में चंदा देते हैं।

Wednesday 21 December 2016

गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 
सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ” यह पंक्तियां सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन को समझने के लिए पर्याप्त है। एक महान वीर, सैन्य कौशल में निपुण और आदर्श व्यक्तित्व वाले शख्स के रूप में इतिहास हमेशा गुरु गोबिंद सिंह जी को याद रखेगा। गुरु गोबिंद जी का जन्म पटना में 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था। माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी थे। कश्मीरी पंडितों के लिए संघर्ष करते हुए जब पिता गुरु तेगबहादुर जी शहीद हो गए तब इन्हें अगला गुरु बनाया गया। इनकी मृत्यु 7 अक्तूबर 1708 को हुई थी।

गुरु गोबिंद सिंह साहिब के कार्य 
गुरु गोबिंद सिंह के कुछ प्रमुख कार्य निम्न हैं:-
* सन 1699 में उन्होंने खालसा का निर्माण मुगल शासकों के खिलाफ लड़ने के लिए किया।
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उन्होंने सिख गुरुओं के सभी उपदेशों को गुरु ग्रंथ साहिब में संगृहीत किया।
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सिखों के नाम के आगे “सिंह” लगाने की परंपरा उन्होंने ही शुरू की।
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गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को समाप्त किया और गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों के लिए गुरु का प्रतीक बनाया।
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युद्ध में सदा तैयार रहने के लिए उन्होंने पंच ककारों को सिखों के लिए अनिवार्य बनाया जिसमें केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण शामिल हैं।
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चंडी दीवार” नामक गुरु गोबिन्द सिंह जी की रचना सिख साहित्य में विशेष महत्त्व रखती है।

गुरु गोबिन्द सिंह जी सिख आदर्शों को जिंदा रखने के लिए किसी भी हद तक गुजरने को तैयार थे। मुगलों से सिख वर्चस्व की लड़ाई में उन्होंने अपने बेटों की कुरबानी दे दी और स्वयं भी शहीद हो गए। 

Friday 16 December 2016

16 दिसम्बर 1971 विजय दिवस

 विजय दिवस

16 दिसम्बर 1971 का दिन भारत के लिए विजय दिवस कहलाता है। वर्तमान समय में ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होगी, लेकिन आज देश के लिए वो दिन है जिसपर हर भारतीय को गर्व महसूस होता रहेगा। आज के दिन ही वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान 16 दिसंबर को ही भारत ने पाकिस्तान पर विजय हासिल की थी और उसी जीत को पूरा हिन्दुस्तान 'विजय दिवस' के रूप में मनाता है।

93000 पाकिस्तानियों ने किया था आत्मसमर्पण

वर्ष 1971 में हुए इस भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना पराजित हुई थी और 16 दिसंबर 1971 को ढाका में 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध के 12 दिनों में अनेक भारतीय जवान शहीद हुए और हजारों घायल हो गए। पाक सेना का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हार स्वीकार की थी।

3,900 भारतीय जवान इस जंग में हुए थे शहीद

भारत-पाक युद्ध के समय जनरल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के प्रमुख थे। इस जंग के बाद बांग्लादेश के रूप में विश्व मानचित्र पर नये देश का उदय हुआ। तक़रीबन 3,900 भारतीय जवान इस जंग में शहीद हुए और 9,851 जवान घायल हुए। एक समय था जब पाकिस्तान पर मिली इस जीत के दिन यानी 16 दिसंबर को देश भर में प्रभातफेरियां निकाली जाती थीं और जश्न का माहौल रहता था, जबकि वर्तमान समय में ऐसा नहीं देखने को नहीं मिलता है।

Monday 5 December 2016

डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस

डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस 2016 में मंगलवार, 6 दिसम्बर को मनाया जायेगा। इस साल मतलब 2016 में 61वां डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस (पुण्यतिथि) मनाया जायेगा।
डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है?

डॉ अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस हर साल देश के प्रति डॉ भीमराव अम्बेडकर के महान योगदान को मनाने के लिए नगर निगम और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य सरकार के कर्मचारियों के संघ द्वारा एक समारोह का आयोजन करके मनाया जाता है। उनके महान प्रयास ने देश को एकजुट रखने में बहुत मदद की है। डॉ भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखित भारत का संविधान अभी भी देश का मार्गदर्शन कर रहा है और आज भी ये कई संकटों के दौरान सुरक्षित रूप से बाहर उभरने में मदद कर रहा है।
भारत सरकार द्वारा डॉ अंबेडकर फाउंडेशन (वर्ष 1992 में मार्च 24 को) स्थापित किया गया, ताकि पूरे देश में लोग सामाजिक न्याय का संदेश प्राप्त कर सकें।

डॉ अंबेडकर फाउंडेशन द्वारा निम्नलिखित गतिविधियॉं की गयी है

  • जनपथ पर डॉ अम्बेडकर नेशनल पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना।
  • हिन्दी सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं में डॉ बी आर अम्बेडकर के कामों के व्याख्यान को उपलब्ध करा रहें हैं।
  • डॉ अंबेडकर के जीवन के मिशन के साथ ही विभिन्न सम्मेलनों, कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों, व्याख्यान, सेमिनार, संगोष्ठी और मेलों का आयोजन।
  • समाज के कमजोर वर्ग के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सामाजिक परिवर्तन के लिए डॉ अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देना।
  • हर साल डॉ अम्बेडकर की 14 अप्रैल को जन्मोत्सव और 6 दिसंबर पर पुण्यतिथि का आयोजन।
  • अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के मेधावी छात्रों के बीच में पुरस्कार वितरित करने के लिए डॉ अम्बेडकर नेशनल मेरिट अवार्ड योजनाएं शुरू करना।
  • हिन्दी भाषा में सामाजिक न्याय संदेश की एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन।
  • अनुसूचित जाति से संबंधित हिंसा के पीड़ितों के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय राहत देना।

Sunday 13 November 2016

महान गुरु नानक देव जी

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका लालन पालन मुस्लिम पड़ोसियों के बीच हुआ। कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक देव का जन्म होने के कारण ही सिख धर्म को मानने वाले इस दिन को प्रकाश उत्सव या गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं।
उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया, वह देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं करते थे। नानक देव जी ने शुरू से ही रीति-रिवाजों और रूढ़ियों को तोड़ा।

तलवंडी में हुआ था जन्म
नानक देव जी का जन्म 14 अप्रैल, 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गांव (हाल में पाकिस्तान में ननकाना) के एक हिन्दू परिवार में हुआ। नानक का नाम बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया। नानक जी के पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। परिवार में गुरु नानक जी के दादा जी शिवराम, दादी बनारस और चाचा लालू थे। गुरुनानक को पारसी और अरबी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

बचपन से ही ध्यान साधना में लीन
नानक को बचपन से ही चरवाहे का काम दिया गया था। पशुओं को चराते समय वह घंटों तक ध्यान में रहते थे। एक दिन उनके पशुओं ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया। इस पर उनके पिता ने नानक देव जी को खूब डांटा। इसके बाद जब गांव का मुखिया राय बुल्लर फसल देखने गया तो फसल सही थी। यहीं से गुरु नानक देव जी के चमत्कार शुरू हो गए।


जातिप्रथा और मूर्ति पूजा का विरोध
राय बुल्लर ने नानक देव जी की दिव्यता को समझकर उन्हें पाठशाला में रखा। इस दौरान उन्होंने हिन्दू धर्म के पवित्र जनेऊ संस्कार से गुजरने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका जनेऊ दया, संतोष और संयम से बंधा होगा। उन्होंने जाति प्रथा का विरोध किया और मूर्ति पूजा में भाग लेने से मना कर दिया।

भूखों को कराया भोजन
गुरु नानक का बचपन से ही रुझान अध्यात्म की तरफ ज्यादा था। उनकी इस प्रवृत्ति को देखते हुए पिता कालू ने उनका ध्यान कृषि और व्यापार में लगाना चाहा लेकिन उनके सभी प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए। घोड़ों के व्यापार के लिए पिता की तरफ से दिए गए 20 रुपये को नानक देव जी ने भूखों के भोजन में लगा दिया।