Sunday 13 November 2016

महान गुरु नानक देव जी

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका लालन पालन मुस्लिम पड़ोसियों के बीच हुआ। कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक देव का जन्म होने के कारण ही सिख धर्म को मानने वाले इस दिन को प्रकाश उत्सव या गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं।
उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया, वह देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं करते थे। नानक देव जी ने शुरू से ही रीति-रिवाजों और रूढ़ियों को तोड़ा।

तलवंडी में हुआ था जन्म
नानक देव जी का जन्म 14 अप्रैल, 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गांव (हाल में पाकिस्तान में ननकाना) के एक हिन्दू परिवार में हुआ। नानक का नाम बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया। नानक जी के पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। परिवार में गुरु नानक जी के दादा जी शिवराम, दादी बनारस और चाचा लालू थे। गुरुनानक को पारसी और अरबी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

बचपन से ही ध्यान साधना में लीन
नानक को बचपन से ही चरवाहे का काम दिया गया था। पशुओं को चराते समय वह घंटों तक ध्यान में रहते थे। एक दिन उनके पशुओं ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया। इस पर उनके पिता ने नानक देव जी को खूब डांटा। इसके बाद जब गांव का मुखिया राय बुल्लर फसल देखने गया तो फसल सही थी। यहीं से गुरु नानक देव जी के चमत्कार शुरू हो गए।


जातिप्रथा और मूर्ति पूजा का विरोध
राय बुल्लर ने नानक देव जी की दिव्यता को समझकर उन्हें पाठशाला में रखा। इस दौरान उन्होंने हिन्दू धर्म के पवित्र जनेऊ संस्कार से गुजरने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका जनेऊ दया, संतोष और संयम से बंधा होगा। उन्होंने जाति प्रथा का विरोध किया और मूर्ति पूजा में भाग लेने से मना कर दिया।

भूखों को कराया भोजन
गुरु नानक का बचपन से ही रुझान अध्यात्म की तरफ ज्यादा था। उनकी इस प्रवृत्ति को देखते हुए पिता कालू ने उनका ध्यान कृषि और व्यापार में लगाना चाहा लेकिन उनके सभी प्रयास व्यर्थ सिद्ध हुए। घोड़ों के व्यापार के लिए पिता की तरफ से दिए गए 20 रुपये को नानक देव जी ने भूखों के भोजन में लगा दिया।

Tuesday 8 November 2016

छठ पूजन

छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है. छठ का त्यौहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.


छठ पूजन 

छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन्न होता है. प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है. पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं.

व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं. खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है. इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है. षष्ठी के दिन घर के समीप ही की सी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है.

छठ पर्व महत्व 

छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है.  देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है  भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.

Monday 7 November 2016

Diwali Pooja

दीपावली, भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीपावली का मतलब होता है, दीपों की अवली यानि पंक्ति। इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्ज‍ित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व, अंधेरी रात को असंख्य दीपों की रौशनी से प्रकाशमय कर देता है।  


दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां हैं। हिंदू मान्यताओं में राम भक्तों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे।  

तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।